स्वास्थ्य-चिकित्सा >> चमत्कारिक तेल चमत्कारिक तेलउमेश पाण्डे
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तुवरक का तेल
तुवरक के पौधे के विभिन्न नाम
हिन्दी-तुवरक, संस्कृत- कटुकपित्थ, कुष्ठवैरी, मराठी-कडुकवठी, कन्नड़गरूड़फल, तामिल- निरडिमुझ तेलुगु- अडविवादामु, मलयालम- केडि, मखेट्टि, नीखेट्टि, लेटिन-Hydnocarpuskurizi
यह पौधा वनस्पति जगत के पलेकोर्टिएसी (Flacourtiaceae) कुल का सदस्य है।
इसके वृक्ष मुख्य रूप से दक्षिण भारत, श्रीलंका आदि में बहुतायत से मिलते हैं। यह काफी सुन्दर होते हैं। पत्तियां सीताफल की पत्तियों के समान किन्तु चमकदार होती हैं। प्रत्येक पती 5 से 10 इंच तक लम्बी तथा डेढ़ से तीन इंच तक चौड़ी होती है। ये लटवाकार अथवा मालाकार तथा नुकीले शीर्षवाली होती हैं। पुष्प सफेद वर्ण के होते हैं तथा गुच्छों में लगते हैं जबकि फल प्रायः गोल, छोटे तथा सेव अथवा कैथ के बराबर होते हैं। फलों पर सूक्ष्म कोमल रोम पाये जाते हैं। फल के अंतर्गत 10 से 20 तक बीज होते हैं। आकार में यह छोटे तथा बादाम जैसे होते हैं। बीजों से कोल्हू की सहायता से संपीड़न विधि द्वारा तेल प्राप्त किया जाता है। साधारण ताप पर यह तेल हल्के पीले रंग का अथवा भूरा-पीला होता है। यह गाढ़ा होता है। 20 डिग्री सेंटीग्रेड ताप या उससे नीचे के ताप पर यह घी के समान जम जाता है। इसमें एक विशिष्ट प्रकार की गंध होती है तथा स्वाद में यह कुछ कड़वा होता है।
आयुर्वेदानुसार यह एक तीक्ष्ण, स्निग्ध, तिक्त, कटु, उष्ण वीर्य, कण्डूघ्न, जन्तुघ्न, व्रणशोधन, व्रण रोपण तथा कुष्ठध्न होता है। उष्ण प्रकृति वाले व्यक्तियों के द्वारा ग्रहण किये जाने पर यह हानि करता है। दुग्ध, घी अथवा शर्करा से इसके दुष्प्रभाव को दूर किया जा सकता है। मौखिक सेवन से यह वामक, रेचक तथा प्रमेहध्न होता है।
रासायनिक रूप से इसमें हिडनोकार्पिक अम्ल तथा चाल मोगरिक अम्ल मुख्य रूप से होता है।
तुवरक के तेल के औषधीय महत्त्व
तुवरक के तेल द्वारा भी स्वास्थ्य सम्बन्धी अनेक लाभ लिये जा सकते हैं, इसलिये इसके औषधीय महत्व को स्वीकार किया गया है। आमतौर पर सामान्य व्यक्ति को इसके प्रयोगों के बारे में जानकारी नहीं होती है, अतः वे इसके लाभ से वंचित रह जाते हैं। यहां पर इस तेल के कुछ विशिष्ट औषधीय प्रयोगों के बारे में बताया जा रहा है। आप भी इनका वांछित प्रयोग करके लाभ ले सकते हैं-
कण्डू (खुजली) दूर करने हेतु- शरीर में कभी-कभी किसी भी कारण से खुजली चलने लगती है। यह शरीर के किसी भी हिस्से में अथवा यौनांगों के आस-पास हो सकती है। उपरोक्त स्थिति में थोड़े से तुवरक के तेल को सम्बन्धित स्थान पर लगा लेना चाहिये। ऐसा करने से खुजली में तुरन्त आराम होता है।
एक्जिमा पर- शुष्क एक्जिमा के निवारणार्थ संबंधित स्थान पर गाय के गोबर के कण्डे से पीड़ित स्थान को थोड़ा सा घिसकर, ऊपर से तुवरक का तेल लगा दें। इस प्रयोग को नित्य कुछ दिनों तक करने से बहुत लाभ होता है। जो एक्जिमा गल रहा हो अर्थात् गीला हो उस पर बगैर रगड़े हुये तेल को केवल लगाने मात्र से लाभ होता है।
किसी भी प्रकार के फोड़े के उपचारार्थ- हाथ-पैरों में अथवा शरीर पर बाहर की ओर कहीं भी उत्पन्न फोड़े पर तुवरक का तेल लगाने से वह बहुत जल्दी अच्छा हो जाता है।
प्रमेह रोगों में- किसी भी प्रकार के प्रमेह में तुवरक के तेल की 2-4 बूंद की मात्रा बताशे में रखकर देने से लाभ होता है। रोगी को इससे अधिक मात्रा नहीं देनी चाहिये। यदि इसके सेवन से उसे कुछ अटपटा लगे तो ऊपर से एक चम्मच शक्कर और फांक लेनी चाहिये। तुवरक के तेल का स्वाद मुंह के स्वाद को थोड़ा बिगाड़ता है। अतः इसे लेने के पश्चात् व्यक्ति को मुख में इलायची लेकर चबाना चाहिये।
तुवरक के तेल का विशेष प्रयोग
तुवरक का तेल उत्तम श्रेणी का कुष्ठनाशक है। कुष्ठ रोग में प्रभावित स्थानों पर इस तेल को लगाने से श्रेष्ठ लाभ होता है। यही नहीं, इसे बाहय रूप से लगाने के साथ-साथ रोगी को 1-2 बूंद नित्य बताशे में रखकर इसका सेवन भी करना चाहिये। इससे अधिक मात्रा में ग्रहण करने से यह रेचक प्रभाव दर्शाता है। उपरोक्त विधि से इसे दिन में 2 बार अथवा 3 बार लगाया जा सकता है किन्तु इसे ग्रहण एक बार ही करना चाहिये। इसे वैद्य के परामर्श के बिना ग्रहण न करें।
तुवरक के तेल के चमत्कारिक प्रयोग
अन्य तेलों की भांति तुवरक के तेल के भी कुछ विशिष्ट चमत्कारिक प्रयोग किये जाते हैं जिनसे विविध समस्याओं का शमन होता है। यहां पर कुछ चमत्कारिक प्रयोगों के बारे में बताया जा रहा है:-
> कुष्ठ रोगी को अपने स्नान के जल में जो कि हल्का गर्म हो, में 6-7 बूंद इस तेल की मिलाकर स्नान करना चाहिये। ऐसा करने से उसके रोग प्रसार की सम्भावना नहीं रहती है।
> जिस घर में रोगों की धार नहीं टूटती हो अर्थात् हमेशा ही कोई न कोई व्यक्ति रोगी बना रहता हो वहां तुवरक के तेल में आम्बा हल्दी मिलाकर उस तेल का दीपक प्रतिदिन 15 दिनों तक जलाना चाहिये। इस हेतु लगभग 50 ग्राम तुवरक का तेल लेकर उसमें आम्बा हल्दी की एक छोटी सी गांठ टुकड़े करके डाल दें। इसके बाद इसे सुरक्षित रख दें। अब रोजाना रूई की एक फूलबती बनाकर इस तेल में डुबोकर पीतल के दीपक पर रखकर जलायें। यह दीपक 5-7 मिनट तक जलेगा तथा इसका इतना जलना ही पर्याप्त है। उपरोक्त 50 ग्राम तेल 15 दिनों के लिये पर्याप्त है।
> अनेक लोग जो नौकरी पेशा होते हैं, उनके प्रमोशन होने में अनेक बाधायें आती हैं अथवा उनके अधिकारी उन पर हमेशा कुपित रहते हैं। ऐसी किसी भी परिस्थिति में यह प्रयोग काफी लाभदायक सिद्ध हो सकता है। इस प्रयोग में संबंधित व्यक्ति 50 मि.ली. अरण्डी का तेल, 50 मि.ली. जैतून का तेल, 10 मि.ली. कपास का तेल तथा 10 मि.ली. तुवरक का तेल मिलाकर इनका मिश्रण तैयार कर ले। इस मिश्रण में 2 बड़ी इलायची तथा 4 लौंग पीसकर डाल दें। इस प्रकार बने 120 मिली. मिश्रण में नित्य एक रूई की फूलबत्ती डुबोकर उसे धातु के दीपक पर रखकर घर के आग्नेय कोण पर (दक्षिणी-पूर्वी कोण पर) जलायें। यह 5-7 मिनट तक जलेगा तथा इसका इतना जलना ही पर्याप्त है। इस प्रकार 40 दिन तक यह प्रयोग करें। ऐसा करने से ईश्वर की कृपा से सम्बन्धित व्यक्ति का संकट दूर हो जाता है तथा उसके कार्य में आने वाली बाधायें दूर होती हैं।
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